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शादी विवाह का मौसम शुरू बदलते दौर में प्रथम पूज्य देवता गणेश जी के रूप में शादियों में नहीं दिखाई देते हाथी

प्रयागराज गौरव।गणपति को हर जगह प्रथम पूज्य माना जाता है। हर शुभ काम की शुरुआत गणपति पूजन से ही होती है। भारतीय विवाह भी इससे अछूते नहीं। शादियों का कार्ड भेजना हो या शादी का पहला भोग धरना हर आयोजन का आरंभ विघ्नहर्ता के नाम से होता है।प्रथम निमंत्रित देव गणेश विवाह की शुरुआत गणपति को आमंत्रित करने के साथ ही होती है। विवाह तय होते ही दुल्हन के पिता गणेश मंदिर जाकर नारियल चढ़ा कर उन्हें विवाह की सूचना देते हैं। इसके साथ ही जब विवाह के निमंत्रण पत्र छपने जाते हैं तो उन पर भी सबसे ऊपर श्री गणेशाय नमः लिखा जाता है। इस तरह गजानन हर विवाह के पहले मेहमान होते हैं। विवाह से 5-7 दिन पहले ब्याह हाथ के नेग से शादी के कार्य का श्री गणेश होता है। इस अवसर पर मांगलिक गीत गये जाते हैं।शादी का निमंत्रण पत्र, श्रीफल और मिठाइयां अर्पण करके गणपति से विवाह में आने और विवाह को विघ्न रहित निपटाने की विनती करते हैं। इस दिन होने वाले दंपति को गोंद के लड्डू खिलवाए जाते हैं। इसी दिन से बुआ या बहन शादी में गाए जाने वाले गीत गाना शुरू कर देती हैं और इस दिन उनकी तरफ से मिठाई बांटी जाती है। कई लोग उपहार भी बांटते हैं।होती है गणपति स्थापना विवाह स्थल पर चाक भात लाने और कन्या पक्ष में लड़की के मामा द्वारा मायरा लाने से पहले लकड़ी के एक पाटे पर गणपति स्थापित किए जाते हैं। पंडित मंत्रोच्चार के साथ सुपारी में प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। इसे भोग लगाकर दुल्हन द्वारा इसकी पूजा करवाई जाती है। इसी तरह विवाह वाले दिन मानक थंभ रोपने के साथ ही पंडित फेरों वाले स्थल पर गणेश स्थापना करते हैं, विवाह के फेरे शुरू होने से पहले भी ‘गणनान्त्वा गणपति’ कहकर प्रथमपूज्य देव विघ्नहर्ता गणेश का आव्हान किया जाता है। उनसे नव विवाहित का जीवन विघ्न रहित रखने की कामना की जाती है। किंतु बदलते दौर में अब याद कर ही भगवान गणेश के रूप में शादी विवाह के अवसरों पर हाथी दिखाई देते हैं।

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