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राम मंदिर आंदोलन में कौंधियारा क्षेत्र के कारसेवकों की रही अहम भूमिका

प्रयागराज गौरव।आज से लगभग तीस वर्ष पूर्व 06 दिसंबर 1992 को सुबह के करीब नौ बज रहे थे,मस्जिद से कुछ ही दूरी पर कारसेवकों का सैलाब उमड़ रहा था।पूरा इलाका ‘जय श्री राम’ के नारे से गूंज रहा था धीरे-धीरे वक्त गुजरता जा रहा था,कुछ ही घंटों में सभी बड़े नेताओं का मंच पर आगमन हो चुका था।वह रामभक्ति का चरम था।तकरीबन आठ घण्टे के भीतर ही कारसेवकों ने पांच सौ वर्षों के कलंक को ढहा दिया।रात भर मलबा हटाए जाने के बाद उसी रात से मंदिर का निर्माण कार्य भी सुरु कर दिया गया।अगले दिन पांच फीट की चहारदीवारी के भीतर रामलला का प्राण प्रतिष्ठा भी किया गया।खुदाई के दौरान मलबे से रामलला के जन्मस्थली से जो प्रमाण मिले वो कारसेवकों को भाव विभोर कर दिया।
राम जन्मभूमि आंदोलन में जारी के स्व ननकु जी,स्व सुभाष केसरी,सुरेश केसरवानी,वीरेंद्र जायसवाल,सुभाष केसरवानी,कैलाश चंद केसरवानी,बनारसी लाल,राम कैलाश पांडेय गडैया,राजेंद्र प्रसाद एवं पिपरहटा कौंधियारा के अवधेश तिवारी,तेजबली तिवारी सहित अन्य कई लोग बढ़ चढ़कर शामिल हुए थे।
आज वहां भव्य और आकर्षक मंदिर के बीच श्री राम की प्राण-प्रतिष्ठा होने से वे सभी काफी खुश हैं।इसकी चर्चा छेड़ने पर सुभाष अग्रहरि जी काफी भावुक हो उठे और अपने आसुओं को पोछते हुए कहने लगे कि भगवान राम की प्राण-प्रतिष्ठा उनके जीवन का सबसे रोमांचकारी पल होगा।अपने जीवन के उस पल को याद करते ही उनके चेहरे पर चमक आ जाती है।

राम मंदिर के आगे नहीं थी किसी की चिंता

परिवार की जिम्मेवारी मेरे ऊपर थी लेकिन राम मंदिर के आगे मुझे किसी की परवाह नहीं थी।यहीं कारण था कि बच्चों और परिवार की चिंता छोड़कर मैंने कार सेवकों के साथ अयोध्या पहुंचने का मन बना लिया।
अवधेश तिवारी ग्राम-पिपरहटा

हफ्ते तक जेल में रखा
जारी निवासी सुरेश केसरवानी जी बताते हैं कि उस समय हम लोगों का एक जत्था जो अयोध्या जा रहा था,उस दौरान सबको पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया साथ ही औऱ भी कार्यकर्ता थे जो जेल गए।जिला प्रशासन की ओर से हमें रामभक्ति का सर्टिफिकेट दिया गया जो कि राम भक्ति का चालान था।कार सेवा के दौरान हमने गोलियों की तड़तड़ाहट और लोगों को मरते देखा था।

पांच सौ वर्ष बाद मिला राम मंदिर
स्थानीय निवासी गोविंद शरण सिंह बताते हैं कि कई वर्षों बाद हमें हमारा राम मंदिर मिला है जिसके लिए सरकार बधाई के पात्र है।जिन कार सेवकों ने इसमें भाग लिया था उनको यह हक दिया जाए कि जब भी वह मंदिर में अपने परिवार के साथ दर्शन के लिए जाए तो उन्हें विशेष सुविधा दी जाए।

राममंदिर के कार सेवक तेजबली तिवारी ने बताया कि 1990 के दौरान जब कार सेवकों पर गोलियां चलाई जा रही थी तब हर जगह जय श्री राम का नारा गूंज रहा था, मानों किसी को अपने जान की कोई परवाह ही न हो।

ढांचा ढहते ही चारों ओर मच गई थी भगदड़।
कार सेवको की आंखों के सामने आज भी जीवित है वह मंजर।
रास्ते में उपद्रवियों द्वारा ट्रेन पर किया गया पथराव।
कारसेवकों ने देखा कई रामभक्तों की मौत का मंजर।

आज तीस वर्ष बाद कौंधियारा के सभी कार सेवक सामान्य जीवन जी रहे हैं।ननकू जी और सुभाष केसरी जी आज इस दुनिया मे नहीं हैं उनकी कमी आज भी उनके साथियों को सताती है।जबकि इनमें से कुछ कारसेवक शिक्षण कार्य मे लगें हैं तो कुछ खेती किसानी में तो कुछ अपना स्टोर चलाकर अपने नियमित कामों में व्यस्त रहते हैं।सभी कारसेवकों ने बताया कि वो अपने गाँव को एक बार फिर से दीवाली पर्व की भांति मंदिरों औऱ घरों को दीपों से सजाएंगे साथ ही एक दूसरे को मिठाइयां बांटकर एक भव्य जश्न मनाने की योजना बना रहे हैं।

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