एक पृथ्वी एक स्वास्थ्य प्रदान करना हमारा लक्ष्य – प्रो.(डॉ.) जी एस तोमर

प्रयागराज गौरव।राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय वाराणसी में पी जी ओरिएंटेशन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ । जिसकी अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ शशि सिंह ने की ।
कार्यक्रम का संचालन लोकप्रिय स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ अंजना सक्सेना ने किया । सर्वप्रथम प्रो. अवधेश कुमार ने प्रो तोमर का पुष्पगुच्छ एवं अंगवस्त्रम से स्वागत किया । मुख्य वक्ता के रूप में अपने उद्बोधन में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर के विज़िटिंग प्रोफ़ेसर एवं राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय हण्डिया के पूर्व प्राचार्य व कानपुर विश्वविद्यालय के आयुर्वेद व यूनानी संकाय के पूर्व डीन प्रो.(डॉ.) जी एस तोमर ने नव प्रवेशित स्नातकोत्तर छात्रों का स्वागत एवं अभिनंदन किया एवं उनको शोध की आवश्यकता एवं महत्व पर अपने अनुभव साझा किए । डॉ तोमर ने कोरोना कालखंड में आयुर्वेद विधा से मिले सकारात्मक परिणामों की चर्चा करते हुए आयुर्वेद की गुणवत्ता को विस्तार से रेखांकित किया । प्रो तोमर ने महाविद्यालय में निरन्तर हो रही शैक्षणिक गतिविधियों की सराहना करते हुए प्राचार्य डॉ शशि सिंह, कार्यक्रम संयोजक डॉ अंजना सक्सेना, प्रो अवधेश कुमार एवं उनकी टीम को बधाई दी । डॉ तोमर ने स्पष्ट किया कि यद्यपि आयुर्वेद एक समय परीक्षित पूर्णतः वैज्ञानिक चिकित्सा विधा है । तथापि इसकी बढ़ती लोकप्रियता के दृष्टिगत हमें वैश्विक परिदृश्य में आज के प्रासंगिक एवं व्यावहारिक वैज्ञानिक मापदंडों पर इसे प्रमाणित करना होगा । ताकि विश्व को उन्हीं की भाषा में इसकी कार्यकारिता एवं उपयोगिता समझाई जा सके । विश्व स्वास्थ्य संगठन के रोग प्रतिबंधन, स्वास्थ्य उन्नयन, रोग प्रशमन एवं प्रकृतिस्थापन जैसे चतुर्मुखी उद्देश्यों की पूर्ति मात्र आयुर्वेद से ही संभव है । आयुर्वेद की समग्रतामूलक सोच (होलिष्टिक एप्रोच) इसे विश्व के आकर्षण का केन्द्र बना रही है । विश्व स्वास्थ्य संगठन का ध्यान आज संक्रामक रोगों से हटकर जीवनशैली जन्य रोगों की ओर आकृष्ट हो रहा है । इस सन्दर्भ में आयुर्वेद बहुत अधिक कारगर सिद्ध हो रहा है । डायबिटीज़, हाईब्लडप्रेसर, हृदय रोग, गठिया, केंसर एवं लिवर डिसीजेज जैसे जीर्ण एवं असाध्य रोगों में आयुर्वेद अत्यन्त प्रभावी है । डॉ तोमर ने नव प्रवेशित पी जी छात्रों का आव्हान किया कि वो अपनी विधा की बारीकियों को समझकर नवीन शोध के द्वारा पीड़ित मानवता की सेवा में तत्पर रहें । अंत में उन्होंने एक पृथ्वी एक चिकित्सा के लक्ष्य को बताते हुए मनुष्य ही नहीं, जानवर एवं पर्यावरण को समाहित करते हुए वसुधैव कुटुम्बकम् के मूल मंत्र के दृष्टिगत सर्वे भवन्तु सुखिन: का लक्ष्य प्राप्त होने तक निरन्तर आगे बढ़ते रहना चाहिए।