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आयुर्वेदीय औषधियाँ ही नहीं जीवनशैली भी विश्व के आकर्षण का केन्द्र- डॉ जी एस तोमर

कोरोना कालखण्ड आयुर्वेद की लोकप्रियता का पुनरुत्थान काल रहा

प्रयागराज गौरव।काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शताब्दी प्रेक्षागृह में टीम वेदांजनि द्वारा प्रायोजित द्विदिवसीय आयुर्वेद कार्यशाला में बतौर अतिथि वक्ता अपने उद्बोधन में विश्व आयुर्वेद मिशन के संस्थापक अध्यक्ष एवं आयुर्वेद के सिद्धहस्त चिकित्सक प्रो.(डॉ.) गिरीन्द्र सिंह तोमर ने वर्तमान स्वास्थ्य सम्बन्धी चुनौतियों के समाधान में आयुर्वेद की भूमिका पर अपने विस्तृत विचार रखे । डॉ तोमर ने कोरोना कालखण्ड को आयुर्वेद की लोकप्रियता का पुनरुत्थान काल बताया । स्वतंत्र भारत के सत्तर सालों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए आयुर्वेद औषधियों की बिक्री में इस काल में अभूतपूर्व उछाल देखने को मिला । यही नहीं इस कालखण्ड ने संक्रामक रोगों के नियंत्रण में व्याधिक्षमत्व की भूमिका को रेखांकित कर आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्रवाद सिद्धांत से भी दुनियाँ को परिचित कराया । डॉ तोमर ने बताया कि अठारहवीं सदी से अब तक संक्रामक रोगजन्य महामारियों से न जाने कितने लोग अकाल कालकवलित हो चुके हैं । हर संक्रामक रोग के लिए वैक्सीन बनाना इतना सरल नहीं है । इनके नियंत्रण में आयुर्वेदीय सिद्धांत न केवल लाभकारी ही हैं अपितु सस्ते एवं सरल भी हैं । आयुर्वेदीय औषधियाँ ही नहीं हमारी जीवनशैली भी विश्व के आकर्षण का केन्द्र बन गई है । पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण से हमारे खान-पान में जो परिवर्तन आया है उससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता निरन्तर घटती जा रही है । पिज़्ज़ा, नूडल्स एवं बर्गर की संस्कृति ने हमारे पारम्परिक स्वस्थ आहार को हमारी थाली से दूर कर दिया है । देश, काल एवं प्रकृति के अनुरूप हमारी आहार व्यवस्था ही हमारे उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु का आधार रही है । हमें पुन: श्री अन्न को हर थाली तक पहुँचाना होगा तभी हम अरने देश को स्वस्थ एवं समृद्धिशाली राष्ट्र के रूप में देख सकेंगे । सभी विधाओं की तरह आयुर्वेद की भी अपनी शक्ति एवं सीमाएँ हैं । अत: हमें अन्य प्रचलित विधाओं के चिकित्सकों को प्रतिस्पर्धी न मानकर पूरक मानना चाहिए तभी रोग मुक्त स्वस्थ विश्व का सपना साकार हो सकेगा ।

Prayagrajgaurav

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