संतों की एक दिन की संगत से मोक्ष की प्राप्ति निश्चित
मवैया मे श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव का आयोजन

प्रयागराज गौरव। क्षेत्र के ग्राम पंचायत मवैया तालुका लवायन में आयोजित श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ महोत्सव के तीसरे दिन ध्रुव चरित्र एवं अजामिल की कथा का वर्णन करके श्रोताओ को निहाल कर दिया। कथावाचक एवं कुलगुरु पं रमाशंकर शुक्ल ने कहां कि मुख्य यजमान पं लक्ष्मी नारायण मिश्र एवं उनके स्वजनों के सहयोग से 13 मार्च शाम 2 बजे से 6 बजे तक श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव आयोजित किया गया है। कथा के तीसरे दिन सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने बढ़चढ़ करके हिस्सा लिया व कथा में धु्रव चरित्र एवं अजामिल कथा का वर्णन सुनकर खुब आनंद लिया। श्रीमद्भागवत कथा के सरस प्रवक्ता पंडित रमाशंकर शुक्ल ने अपनी मधुर वाणी से कथा के तीसरे दिन भक्त ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि एक बार उत्तानपाद सिंहाशन पर बैठे हुए थे। ध्रुव भी खेलते हुए राजमहल में पहुंच गए। उस समय ध्रुव की अवस्था पांच वर्ष की थी। राजा उत्तनपाद की गोदी में उत्तम बैठा हुआ था। ध्रुव भी राजा की गोदी में चढ़ने का प्रयास करने लगे। सुरुचि को अपने सौभाग्य का इतना अभिमान था कि उसने ध्रुव को डांटा- और कहा कि गोद में चढ़ने का तेरा अधिकार नहीं है। अगर इस गोद में चढ़ना है तो पहले भगवान का भजन करके इस शरीर का त्याग कर और फिर मेरे गर्भ से जन्म लेकर मेरा पुत्र बन।” तब तू इस गोद में बैठने का अधिकारी होगा ।
कुलगुरु ने अजामिल की कथा कहते हुए बताया कि दुष्ट एवं दुराचारी होने के बावजूद संतों की एक दिन की संगत से मोक्ष की प्राप्ति होती है अजामिल कान्यकुब्ज ब्राह्माण कुल में जन्मे थे और कर्मकाण्डी थे। एक दिन वह गांव से बाजार जा रहे थे तो उन्होंने एक नर्तकी को देख लिया। नर्तकी वेश्या थी बावजूद इसके वह उसे अपने घर ले आए। अजामिल अपने नौ बच्चों के साथ रहने लगे। एक दिन पच्चीस संतों का एक काफिला अजामिल के गांव से गुजर रहा था। यहां पर शाम हो गई तो संतों ने अजामिल के घर के सामने डेरा जमा दिया। रात में जब अजामिल आया तो उसने साधुओं को अपने घर के सामने देखा। इससे वह बौखला गया और साधुओं को भला बुरा कहने लगा। इस आवाज को सुन कर अजामिल की पत्नी जो वेश्या थी वहां आ गई। पति को डांटते हुए शांत कर दिया। अगले दिन साधुओं ने अजामिल से दक्षिणा मांगी। इस पर वह फिर बौखला गया और साधुओं को मारने के लिए दौड़ पड़ा। तभी पत्नी ने उसे रोक दिया। साधुओं ने कहा कि हमें दक्षिणा में रुपया पैसा नहीं चाहिए। इस पर अजामिल ने हां कह दिया। साधुओं ने कहा कि तुम अपने होने वाले पुत्र का नाम नारायण रख लो। बस यही हमारी दक्षिणा है। अजामिल की पत्नी को पुत्र पैदा हुआ तो अजामिल ने उसका नाम नारायण रख लिया और नारायण से प्रेम करने लगा। इसके बाद जब अजामिल का अंत समय आया तो यमदूतों को भगवान के सामने अजामिल को छोड़ कर जाना पड़ गया। इस तरह अजामिल को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसलिए कहा गया है कि भगवान का नाम लेने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।