आदि शंकराचार्य के ग्रंथों से संभव हैं आत्म स्वरूप का ज्ञान -आनंदमूर्ति गुरुमाँ
मानवता के उद्धार के लिए जन्म लेते है ऋषि

महाकुंभ नगर। प्रयागराज महाकुंभ के एकात्म धाम शिविर में चल रही अद्वैतामृतम् कथा के चौथे दिन आनंदमूर्ति गुरुमाँ ने दृग्-दृश्य-विवेक पर बोलते हुए श्रोताओं को आत्मा के वास्तविक स्वरूप और जीवन की विभिन्न अवस्थाओं के रहस्यों से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति—इन तीनों अवस्थाओं में एक ही सत्य विद्यमान है जिसे ब्रह्म, सच्चिदानंद, या ॐ कहते हैं।
इन अवस्थाओं को जानने वाले को दृष्टा कहते हैं और यही दृष्टा, ओंकार का स्वरूप है। “मौन अस्तित्व का प्रकटीकरण ही ओंकार है।” जहाँ मन है, वहाँ अहं भाव की उत्पत्ति होती है और मन का अस्तित्व समाप्त होते ही व्यक्ति सुख-दुख से परे हो जाता है।
उन्होंने कहा कि “अहम वृत्ति मिथ्या है, जबकि वास्तविक स्वरूप नित्य, शुद्ध, मुक्त, और अनादि स्वरूप है, जो किसी भी परिस्थिति में परिवर्तित नहीं होता। देह भाव का अज्ञान ही दुख का कारण है।” आत्मा का बोध जीवन रहते हुए ही संभव है और यह ज्ञान आदि शंकराचार्य के ग्रंथों के माध्यम से प्राप्त हो सकता है।
जीवन में मुक्ति का मार्ग केवल ज्ञान
जब तक मोह और अज्ञान का त्याग नहीं होता, तब तक दुख का अंत नहीं हो सकता। कर्मों के क्षीण होने पर मोह का बंधन टूटता है, लेकिन वासना के कारण पुनः जन्म होता है। “जहाँ मोह है, वहाँ बंधन है और जहाँ बंधन है, वहाँ दुख है।”
उन्होंने जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति अवस्थाओं की तुलना करते हुए कहा कि जाग्रत अवस्था में बुद्धि राजा होती है, स्वप्न में मन राजा होता है, और सुषुप्ति में दोनों अविद्या की स्थिति में होते हैं। अंतःकरण में उठने वाली वृत्तियों से जब व्यक्ति अपने अहम को जोड़ लेता है, तब भावनाओं का अनुभव होता है।
●अन्य गतिविधियां भी बनी आकर्षण का केंद्र
एकात्म धाम में अद्वैत वेदांत पर आधारित भव्य प्रदर्शनियां, 1000+ शीर्षकों वाली पुस्तक प्रदर्शनी, भी दर्शकों का ध्यान खींच रही हैं। साथ ही आगामी दिनों में विमर्श सभा, संगीतमय प्रस्तुतियां, संत कबीर, तुकाराम और गुरु नानक जी की रचनाओं पर आधारित मधुर गायन भी होगा।